अच्छे दिन कब आएँगे, इसी इंतज़ार में रहते हम ।
परिंदे लौटके आएँगे यही सोच सह जाते गम ।।
वक्त-ए-खिजाँ बीतेगा आएँगे दिन बहार के ।
सय्याद-ए- अजल भी थम जाए देख फ़िज़ा गुलिसताँ के ।।
गुफ़्तगू हमारी अंदर बाहर सूरज-निगाहियाँ ।
सबेरा हो सुहाना-सा इश्क ले अँगडाइयाँ ।।
दिल-ब-दिल गुम हों प्यार-ओ- मोहब्बत में
बेज़ुबाँ हम हों इश्क के मय-ख़ाने में ।।
ख्वाब क्या टूटा कलेजा बिखर गया
ख़ुद को फिर पाया दुनिया-ए-बूचड़खाने में ।।
परिंदे लौटके आएँगे यही सोच सह जाते गम ।।
वक्त-ए-खिजाँ बीतेगा आएँगे दिन बहार के ।
सय्याद-ए- अजल भी थम जाए देख फ़िज़ा गुलिसताँ के ।।
गुफ़्तगू हमारी अंदर बाहर सूरज-निगाहियाँ ।
सबेरा हो सुहाना-सा इश्क ले अँगडाइयाँ ।।
दिल-ब-दिल गुम हों प्यार-ओ- मोहब्बत में
बेज़ुबाँ हम हों इश्क के मय-ख़ाने में ।।
ख्वाब क्या टूटा कलेजा बिखर गया
ख़ुद को फिर पाया दुनिया-ए-बूचड़खाने में ।।
खूबसूरत अभिव्यक्ति ...जरा और मंजाव जरूरी
ReplyDeleteशुक्रिया कोशिश करूँगी !
DeleteWann immer sie sich wieder klären,
ReplyDeleteso lange harr' ich bess'rer Tage.
Die Vögel werden wiederkehren ...
Der Ausblick lindert meine Plage.