अच्छे दिन

अच्छे दिन कब आएँगे, इसी  इंतज़ार में रहते हम ।
परिंदे लौटके आएँगे यही सोच सह जाते गम ।।

वक्त-ए-खिजाँ बीतेगा आएँगे दिन  बहार के ।
सय्याद-ए- अजल भी थम जाए देख फ़िज़ा गुलिसताँ के ।।

गुफ़्तगू हमारी अंदर बाहर सूरज-निगाहियाँ ।
सबेरा हो सुहाना-सा इश्क ले अँगडाइयाँ ।।

दिल-ब-दिल गुम हों प्यार-ओ- मोहब्बत में
बेज़ुबाँ हम हों इश्क के  मय-ख़ाने में ।।

ख्वाब क्या टूटा कलेजा बिखर गया
ख़ुद को फिर पाया दुनिया-ए-बूचड़खाने में ।।

Comments

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति ...जरा और मंजाव जरूरी

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  2. द्रुपदApril 27, 2018 at 5:56 AM

    Wann immer sie sich wieder klären,
    so lange harr' ich bess'rer Tage.
    Die Vögel werden wiederkehren ...
    Der Ausblick lindert meine Plage.

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